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अरहर की खेती (Arahar dal farming information in hindi)

अरहर की खेती (Arahar dal farming information in hindi)

दोस्तों आज हम बात करेंगे अरहर की दाल के विषय पर, अरहर की दाल को बहुत से लोग तुअर की दाल भी कहते हैं। अरहर की दाल बहुत खुशबूदार और जल्दी पच जाने वाली दाल कही जाती है। 

अरहर की दाल से जुड़ी सभी आवश्यक बातों को भली प्रकार से जानने के लिए हमारे इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहे:

अरहर की दाल का परिचय:

आहार की दृष्टिकोण से देखे तो अरहर की दाल बहुत ही ज्यादा उपयोगी होती है। क्योंकि इसमें विभिन्न प्रकार के आवश्यक तत्व मौजूद होते हैं जैसे: खनिज, कार्बोहाइड्रेट, लोहा, कैल्शियम आदि भरपूर मात्रा में मौजूद होता है। 

अरहर की दाल को रोगियों को खिलाना लाभदायक होता है। लेकिन जिन लोगों में गैस कब्ज और सांस जैसी समस्या हो उनको अरहर दाल का सेवन थोड़ा कम करना होगा। 

अरहर की दाल शाकाहारी भोजन करने वालो का मुख्य साधन माना जाता है शाकाहारी अरहर दाल का सेवन बहुत ही चाव से करते हैं।

अरहर दाल की फसल के लिए भूमि का चयन:

अरहर की फ़सल के लिए सबसे अच्छी भूमि हल्की दोमट मिट्टी और हल्की प्रचुर स्फुर वाली भूमि सबसे उपयोगी होती है। यह दोनों भूमि अरहर दाल की फसल के लिए सबसे उपयुक्त होती हैं। 

बीज रोपण करने से पहले खेत को अच्छी तरह से दो से तीन बार हल द्वारा जुताई करने के बाद, हैरो चलाकर खेतों की अच्छी तरह से जुताई कर लेना चाहिए। 

अरहर की फ़सल को खरपतवार से सुरक्षित रखने के लिए जल निकास की व्यवस्था को बनाए रखना उचित होता है। तथा पाटा चलाकर खेतों को अच्छी तरह से समतल कर लेना चाहिए। अरहर की फसल के लिए काली भूमि जिसका पी.एच .मान करीब 7.0 - 8. 5 सबसे उत्तम माना जाता है।

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अरहर दाल की प्रमुख किस्में:

अरहर दाल की विभिन्न विभिन्न प्रकार की किस्में उगाई जाती है जो निम्न प्रकार है:

  • 2006 के करीब, पूसा 2001 किस्म का विकास हुआ था। या एक खरीफ मौसम में उगाई जाने वाली किस्म है। इसकी बुवाई में करीब140 से लेकर 145 दिनों का समय लगता है। प्रति एकड़ जमीन में या 8 क्विंटल फ़सल की प्राप्ति होती है।
  • साल 2009 में पूसा 9 किस्म का विकास हुआ था। इस फसल की बुवाई खरीफ रबी दोनों मौसम में की जाती है। या फसल देर से पकती है 240 दिनों का लंबा समय लेती है। प्रति एकड़ के हिसाब से 8 से 10 क्विंटल फसल का उत्पादन होता है।
  • साल 2005 में पूसा 992 का विकास हुआ था। यह दिखने में भूरा मोटा गोल चमकने वाली दाल की किस्म है।140 से लेकर 145 दिनों तक पक जाती है प्रति एकड़ भूमि 6.6 क्विंटल फसल की प्राप्ति होती है। अरहर दाल की इस किस्म की खेती पंजाब, हरियाणा, पश्चिम तथा उत्तर प्रदेश दिल्ली तथा राजस्थान में होती है।
  • नरेंद्र अरहर 2, दाल की इस किस्म की बुवाई जुलाई मे की जाती हैं। पकने में 240 से 250 दिनों का टाइम लेती है। इस फसल की खेती प्रति एकड़ खेत में 12 से 13 कुंटल होती है। बिहार, उत्तर प्रदेश में इस फसल की खेती की जाती।
  • बहार प्रति एकड़ भूमि में10 से 12 क्विंटल फसलों का उत्पादन होता है। या किस्म पकने में लगभग 250 से 260 दिन का समय लेती है।
  • दाल की और भी किस्म है जैसे, शरद बी आर 265, नरेन्द्र अरहर 1और मालवीय अरहर 13,

आई सी पी एल 88039, आजाद आहार, अमर, पूसा 991 आदि दालों की खेती की प्रमुख है।

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अरहर दाल की फ़सल बुआई का समय:

अरहर दाल की फसल की बुवाई अलग-अलग तरह से की जाती है। जो प्रजातियां जल्दी पकती है उनकी बुवाई जून के पहले पखवाड़े में की जाती है विधि द्वारा। 

दाल की जो फसलें पकने में ज्यादा टाइम लगाती है। उनकी बुवाई जून के दूसरे पखवाड़े में करना आवश्यक होता है। दाल की फसल की बुवाई की प्रतिक्रिया सीडडिरल यह फिर हल के पीछे चोंगा को बांधकर पंक्तियों द्वारा की जाती है।

अरहर दाल की फसल के लिए बीज की मात्रा और बीजोपचार:

जल्दी पकने वाली जातियों की लगभग 20 से 25 किलोग्राम और धीमे पकने वाली जातियों की 15 से 20 किलोग्राम बीज /हेक्टर बोना चाहिए। 

जो फसल चैफली पद्धति से बोई जाती हैं उनमें बीजों की मात्रा 3 से 4 किलो प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता होती है। फसल बोने से पहले करीब फफूदनाशक दवा का इस्तेमाल 2 ग्राम थायरम, 1 ग्राम कार्बेन्डेजिम यह फिर वीटावेक्स का इस्तेमाल करे, लगभग 5 ग्राम ट्रयकोडरमा प्रति किलो बीज के हिसाब से प्रयोग करना चाहिए। 

उपचारित किए हुए बीजों को रायजोबियम कल्चर मे करीब 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करने के बाद खेतों में लगाएं।

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अरहर की फसल की निंदाई-गुडाईः

अरहर की फसल को खरपतवार से सुरक्षित रखने के लिए पहली निंदाई लगभग 20 से 25 दिनों के अंदर दे, फूल आने के बाद दूसरी निंदाई शुरू कर दें। खेतों में दो से तीन बार कोल्पा चलाने से अच्छी तरह से निंदाई की प्रक्रिया होती है।

तथा भूमि में अच्छी तरह से वायु संचार बना रहता है। फसल बोने के नींदानाषक पेन्डीमेथीलिन 1.25 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व / हेक्टर का इस्तेमाल करे। नींदानाषक का इस्तेमाल करने के बाद नींदाई करीब 30 से 40 दिन के बाद करना आवश्यक होता है।

अरहर दाल की फसल की सिंचाईः

किसानों के अनुसार यदि सिंचाई की व्यवस्था पहले से ही उपलब्ध है, तो वहां एक सिंचाई फूल आने से पहले करनी चाहिए। 

तथा दूसरे सिंचाई की प्रक्रिया खेतों में फलिया की अवस्था बन जाने के बाद करनी चाहिए। इन सिंचाई द्वारा खेतों में फसल का उत्पादन बहुत अच्छा होता है।

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अरहर की फसल की सुरक्षा के तरीके:

कीटो से फसलों की सुरक्षा करने के लिए क्यूनाल फास या इन्डोसल्फान 35 ई0सी0, 20 एम0एल का इस्तेमाल करें। फ़सल की सुरक्षा के लिए आप क्यूनालफास, मोनोक्रोटोफास आदि को पानी में घोलकर खेतों में छिड़काव कर सकते हैं।

इन प्रतिक्रियाओं को अपनाने से खेत कीटो से पूरी तरह से सुरक्षित रहते हैं। दोस्तों हम उम्मीद करते हैं, कि आपको हमारा या आर्टिकल अरहर पसंद आया होगा। 

हमारे इस आर्टिकल में अरहर से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक जानकारियां मौजूद हैं। जो आपके बहुत काम आ सकती है। 

यदि आप हमारी दी गई जानकारियों से संतुष्ट है तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों के साथ और सोशल मीडिया पर शेयर करें। धन्यवाद।

अरहर की खेती से जुड़ी विस्तृत जानकारी

अरहर की खेती से जुड़ी विस्तृत जानकारी

अरहर अपने आप में पोषण और पोषक तत्वों का खजाना होती है। साथ ही, इसकी खेती के पश्चात मृदा को भी अच्छी मात्रा में पोषण प्राप्त हो जाता है। 

दलहन उत्पादन के क्षेत्र में कृषकों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार निरंतर प्रयासरत है। इसी के साथ कृषकों को ज्यादा पैदावार देने वाली दाल की उत्तम किस्मों की खेती के लिए भी प्रोत्साहन मिल रहा है। 

दालों की खेती के विषय में बात की जाए तो भारत में अरहर दाल बड़े स्तर पर उगाई जाती है। विश्व की 85% फीसद अरहर की उपज भारत में ही होती है। 

बतादें, कि अरहर की दाल प्रोटीन, खनिज, कार्बोहाइड्रेट, लोहा, कैल्शियम आदि पोषक तत्वों से भरपूर होती है। इसकी खेती विशेष तोर पर बिहार, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में की जाती है। 

अरहर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु एवं मृदा 

अरहर दाल का उत्पादन शुष्क और नमी वाले इलाकों में किया जाता है। इसकी खेती के लिए अच्छी सिंचाई के साथ सूर्य की ऊर्जा की भी आवश्यकता होती है। 

इसलिए इसकी बुवाई के लिए जून-जुलाई का महीना सबसे अच्छा माना जाता है। अरहर की बेहतरीन पैदावार लेने के लिए अरहर को मटियार दोमट मृदा या रेतीली दोमट मृदा में उगा सकते हैं। 

अरहर की बुवाई से पहले खेतों में गोबर की कंपोस्ट खाद को डालकर मृदा को पोषण प्रदान करें। खेत में गहरी जुताईयों के पश्चात जल निकासी का अवश्य प्रबंध करें, क्योंकि जलभराव से अरहर बर्बाद हो जाती है। 

जून-जुलाई के मौसम में पहली बारिश पड़ते ही या जून के दूसरे सप्ताह से अरहर की बुवाई का कार्य शुरु कर लें। बुवाई के लिए अरहर की मान्यता प्राप्त उन्नत किस्मों का ही चुनाव करें, इससे गुणवत्तापूर्ण उपज लेने में सहायता मिलेगी। खेतों में बुवाई से पहले बीजोपचार भी करना अत्यंत आवश्यक है, जिससे फसल में कीट-रोग न लग पाऐं। 

अरहर की फसल में सिंचाई और पोषण प्रबंधन

खेतों में अरहर की बुवाई करने के पश्चात समय-समय पर निराई-गुड़ाई का कार्य करें और खरपतवारों को उखाड़कर भूमि में ही दबा दें। अरहर की फसल में बुवाई के 30 दिन पश्चात फूल आने पर प्रथम सिंचाई कर लें। 

दूसरी सिंचाई का कार्य फसल में फली आने पर मतलब करीब 70 दिन करना चाहिए। अरहर की सिंचाई बारिश पर ही निर्भर करती है। 

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परंतु, कम बारिश पड़ने पर बुवाई से 110 दिन बाद भी फसल में पानी लगा देना चाहिए। अरहर में कीट और बीमारियों की निगरानी करते रहें और इनकी रोकथाम के लिए जैविक कीटनाशकों का ही उपयोग करें।

अरहर की फसल में लागत और आय

सह-फसल के रूप में अरहर की खेती करने पर यह 5 साल तक किसानों को कम खर्च में दोगुना लाभ कमा कर देती है। अरहर के साथ ज्वार, बाजरा, उड़द और कपास की खेती कर सकते हैं। 

अरहर खुद तो पोषण का खजाना होती ही है। साथ ही मिट्टी को भी पोषण प्रदान करती है। अरहर के उत्पादन की बात करें तो करीब 1 हैक्टेयर उपजाऊ और सिंचित भूमि से 25-40 क्विंटल तक उपज उठा सकते हैं। 

वहीं कम पानी वाले क्षेत्रों में भी अरहर 15-30 क्विंटल तक उपज प्रदान करती है। यही वजह है, कि प्रमुख दलहनी फसल होने के साथ-साथ इसे नकदी फसल भी कहा जाता है।